हास्य-व्यंग्य के सुर न अटके, न भटके, न लटके

उज्जैन | विगत 37 वर्षों से रंगमंच पर सक्रिय अभिनव रंगमंडल के 34वें राष्ट्रीय नाट्य समारोह की हास्य-व्यंग्य पर केंद्रित तीसरी शाम प्रेक्षकों को हंसाती और गुदगुदाती रही। विख्यात रंगकर्मी स्व. दिनेश ठाकुर द्वारा स्थापित रंग संस्था अंक ने दो एकल हास्य नाटक अशोक मिश्रा के निर्देशन में मंचित किए।

नाटक अटके, भटके, लटके में दो अलग-अलग कहानियों जिनोबिया मेंशन और नूरमहल की कहानी बयां करता है। पहली कहानी गायिका सुशुप्ता गुप्ता की है, जो जीवन के सबसे बड़े कॉन्सर्ट की तैयारी कर रही है लेकिन उसे रियाज के लिए वक्त नहीं मिल पाता। फिर भी उसकी प्रस्तुति शानदार होती है। यह कैसे संभव हुआ, इससे पर्दा नाटक के अंत में ही उठता है। दूसरी कहानी नूर महल में रहने वाले 99 साल के व्यक्ति बड़े अब्बा की है, जो पांच दिन बाद जीवन के सौ साल पूरा करने वाले होते हैं लेकिन एक हादसे से वह कौमा में चले जाते हैं। उन्हें बचाने के लिए होने वाली जद्दोजहद को नाटक में दिखाया जाता है।

किसी भी नाट्य मंचन में तीन पक्ष प्रमुख और महत्वपूर्ण हैं यथा आलेख, अभिनेता और दर्शक। बाकी सभी तत्व सहयोगी हो सकते है किंतु आवश्यक नहीं। एकल अभिनय में अभिनेता को जो स्पेस मिलता है वही उसकी वास्तविक प्रतिभा के दर्शन कराता है। हिंदी नाट्य में प्रयोगों की भरमार और गिमिक्स कि लूटमार ने अक्सर अभिनेता को बौना बनाने का काम किया इसीलिए दर्शक और अभिनेता के बीच स्पीड ब्रेकर को खत्म करने का काम किया एवं अभिनेता को स्थापित किया एकल पात्रीय नाट्य ने। अटके, भटके, लटके सुर में प्रीता माथुर ठाकुर और अमन गुप्ता ने अपने और दर्शकों के बीच मात्र अदृश्य आलेख रखते हुए उन्हें स्पर्श भी किया तो उनसे मुठभेड़ भी की। मंगलवार शाम 7 बजे से नाटक बाबा पाखंडी की प्रस्तुति होगी।

रंगकर्मी गिरिजेश व्यास की समीक्षा रिपोर्ट

नाटक में कलाकारों ने अपने अभिनय से दर्शकों काे बांधे रखा।

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